आरबीआई ने रेपो रेट को 6.50% पर अपरिवर्तित रखने का बडा फैसला किया है

आरबीआई मौद्रिक नीति(RBI’s Monetary Policy):

रेपो रेट : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने आज यानी 6 अक्टूबर 2023 को अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की घोषणा की है। इसमें आरबीआई ने रेपो रेट को 6.50% पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया है। रेपो रेट वह दर है जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है। रेपो रेट में वृद्धि से बैंकों द्वारा उधार लिए गए धन की लागत बढ़ जाती है, जिसका परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए ब्याज दरों में वृद्धि होती है।

आरबीआई ने रेपो रेट को अपरिवर्तित रखने का फैसला खुदरा मुद्रास्फीति में नरमी के रुझान को देखते हुए लिया है। हालांकि, आरबीआई ने यह भी चेतावनी दी है कि मुद्रास्फीति का जोखिम अभी भी बना हुआ है और वह मुद्रास्फीति पर लगातार नजर रखेगा।

 

मौद्रिक नीति समिति की मुख्य बातें:

 रेपो रेट को 6.50% पर अपरिवर्तित रखा गया है।

 खुदरा मुद्रास्फीति में नरमी के रुझान को देखते हुए रेपो रेट को अपरिवर्तित रखने का फैसला लिया गया है।

 हालांकि, आरबीआई ने यह भी चेतावनी दी है कि मुद्रास्फीति का जोखिम अभी भी बना हुआ है और वह मुद्रास्फीति पर लगातार नजर रखेगा।

 आरबीआई ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान 7.2% से घटाकर 7% कर दिया है।

 आरबीआई ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान 6.7% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया है।

 मौद्रिक नीति का आम आदमी पर प्रभाव:

आरबीआई की मौद्रिक नीति का आम आदमी पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। प्रत्यक्ष रूप से, रेपो रेट में वृद्धि से बैंक उपभोक्ताओं और व्यवसायों को दिए जाने वाले कर्ज पर ब्याज दरें बढ़ाते हैं। इसका मतलब है कि अगर आप कोई लोन लेना चाहते हैं या पहले से ही किसी लोन के ब्याज का भुगतान कर रहे हैं, तो आपको ज्यादा ब्याज देना होगा।

अप्रत्यक्ष रूप से, आरबीआई की मौद्रिक नीति आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति को प्रभावित करती है। आर्थिक वृद्धि दर धीमी होने पर कंपनियां कम कर्मचारी रखती हैं और वेतन वृद्धि भी कम होती है। इसका मतलब है कि आम आदमी के पास कम खर्च करने योग्य आय होगी। मुद्रास्फीति बढ़ने पर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे आम आदमी की खरीद क्षमता घट जाती है।

 

मौद्रिक नीति की चुनौतियां:

आरबीआई की मौद्रिक नीति को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी दबाव बढ़ रहा है। इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा और खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि से मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम बना हुआ है।

आरबीआई को इन चुनौतियों का सामना करते हुए आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाए रखना होगा।

निष्कर्ष:

आरबीआई की मौद्रिक नीति का भारतीय अर्थव्यवस्था और आम आदमी पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। आरबीआई को वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा और खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाए रखना होगा।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने आज अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा (Monetary Policy Review) में रेपो रेट को 6.5% पर अपरिवर्तित रखा है। यह लगातार तीसरी बैठक है जिसमें RBI ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है।

RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि महंगाई अभी भी ऊंची है, लेकिन यह धीरे-धीरे कम हो रही है। RBI महंगाई पर नजर रखेगा और जरूरत पड़ने पर आगे कदम उठाएगा।

रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं होने से बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता बना रहेगा। इससे अर्थव्यवस्था में विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। हालांकि, इससे आम आदमी की जेब पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि बैंक होम लोन और अन्य कर्ज पर ब्याज दरें बढ़ा सकते हैं।

FAQs:

 

Q. रेपो रेट क्या है?

  1. रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI बैंकों को अल्पकालिक उधार देता है। रेपो रेट में बदलाव करके RBI अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है।

Q. मौद्रिक नीति क्या है?

  1. मौद्रिक नीति वह तरीका है जिसके द्वारा RBI अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति और ब्याज दरों को नियंत्रित करता है। RBI मौद्रिक नीति का उपयोग करके मुद्रास्फीति को कम रखने और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।

Q. रेपो रेट में वृद्धि का अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है?

  1. रेपो रेट में वृद्धि से बैंकों के लिए उधार लेना महंगा हो जाता है। इससे बैंक ग्राहकों को होम लोन और अन्य कर्ज पर ब्याज दरें बढ़ाते हैं। इससे लोगों की उधार लेने की क्षमता कम हो जाती है और अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर धीमी हो सकती है।

Q. रेपो रेट में कमी का अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है?

  1. रेपो रेट में कमी से बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता हो जाता है। इससे बैंक ग्राहकों को होम लोन और अन्य कर्ज पर ब्याज दरें कम करते हैं। इससे लोगों की उधार लेने की क्षमता बढ़ती है और अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को बढ़ावा मिलता है।

Q. RBI मौद्रिक नीति की समीक्षा हर कितनी बार करता है?

  1. RBI मौद्रिक नीति की समीक्षा हर दो महीने में एक बार करता है। यह समीक्षा एक मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा की जाती है। MPC में RBI गवर्नर और छह अन्य सदस्य शामिल होते हैं।

 

Disclaimer:

This blog post is for informational purposes only and should not be considered financial advice. Please consult a financial advisor before making any investment decisions.

 

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