चुनावी बॉन्ड क्या हैं? सुप्रीम कोर्ट का फैसला और इसका शेयर बाजार पर क्या प्रभाव होगा? – Electoral Bond: What is its secret and what was the decision of the Supreme Court? Will this affect the stock market in the upcoming elections?
भारत में राजनीतिक चंदा हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है। इसमें पारदर्शिता की कमी और गुमनाम दाताओं को लेकर कई सवाल उठते रहते हैं। इन सवालों को संबोधित करने के लिए 2017 में चुनावी बॉन्ड योजना शुरू की गई थी। लेकिन, इस योजना पर भी कई आशंकाएं जताई गईं और इसकी वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। भारतीय चुनाव प्रणाली में चुनावी बॉन्ड – Electoral Bond: What is its secret and what was the decision of the Supreme Court? Will this affect the stock market in the upcoming elections? – एक चर्चित विषय रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इसे और भी सुर्खियों में ला दिया है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम चुनावी बॉन्ड्स के बारे में विस्तार से जानेंगे, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का आकलन करेंगे और आने वाले चुनावों में इसके शेयर बाजार पर संभावित प्रभाव को समझने की कोशिश करेंगे।
चुनावी बॉन्ड क्या होते हैं? – Electoral Bond: What is its secret and what was the decision of the Supreme Court? Will this affect the stock market in the upcoming elections? –
चुनावी बॉन्ड (इलेक्टरल बॉन्ड) – Electoral Bond: What is its secret and what was the decision of the Supreme Court? Will this affect the stock market in the upcoming elections? – सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले वाहक उपकरण होते हैं, जिन्हें बियरर इंस्ट्रूमेंट (Bearer Instrument) भी कहा जाता है। ये कुछ हद तक मुद्रा नोटों की तरह काम करते हैं और इन्हें किसी विशिष्ट राशि के लिए खरीदा जा सकता है। इन्हें भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा जारी किया जाता है और ₹1,000, ₹10,000, ₹1 लाख, ₹10 लाख और ₹1 करोड़ के मूल्य में उपलब्ध होते हैं। आप इन्हें कैश या चेक से खरीद सकते हैं, लेकिन खरीदार का विवरण गुप्त रहता है। जिन्हें खरीदना है वे इसे नकद या चेक से खरीद सकते हैं, लेकिन उनकी पहचान गोपनीय रहती है। इन बॉन्डों – Electoral Bond: What is its secret and what was the decision of the Supreme Court? Will this affect the stock market in the upcoming elections? – को राजनीतिक दलों को दान दिया जा सकता है, जिसे दल सरकार द्वारा निर्दिष्ट बैंकों में जमा कर सकते हैं और बदले में धन प्राप्त कर सकते हैं, फिर भी दाता का विवरण गुप्त ही रहता है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: चुनावी बॉन्ड्स को खारिज
गुरुवार (15 फरवरी) , 2024 को सुप्रीम कोर्ट की पांच–न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉन्ड – Electoral Bond: What is its secret and what was the decision of the Supreme Court? Will this affect the stock market in the upcoming elections? – योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया। अदालत ने इसे सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना, क्योंकि गुमनामी के चलते दाताओं का पता लगाना असंभव हो जाता है। कोर्ट ने कहा कि यह योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है, क्योंकि इससे यह पता नहीं चलता है कि राजनीतिक दलों को कौन दान दे रहा है। इस फैसले को राजनीतिक चंदा में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
इस फैसले के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि यह राजनीतिक दलों के लिए पारदर्शी तरीके से धन जुटाना कठिन बना सकता है।
क्या इससे शेयर बाजार में उतार–चढ़ाव आएगा?
यह कहना मुश्किल है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का शेयर बाजार पर कोई सीधा प्रभाव पड़ेगा या नहीं। हालांकि, कुछ संभावित प्रभाव हो सकते हैं:
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अनिश्चितता: फैसले से अल्पावधि में बाजार में कुछ अस्थिरता आ सकती है क्योंकि निवेशक भविष्य – Electoral Bond: What is its secret and what was the decision of the Supreme Court? Will this affect the stock market in the upcoming elections? – के राजनीतिक परिदृश्य के बारे में अनिश्चित हैं।
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खुदरा निवेशक: यह फैसला अल्पावधि में खुदरा निवेशकों की धारणा को प्रभावित कर सकता है, जिससे वे बाजार से दूर जा सकते हैं।
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नियमों में बदलाव: सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले – Electoral Bond: What is its secret and what was the decision of the Supreme Court? Will this affect the stock market in the upcoming elections? – के बाद नए नियम बना सकती है, जिसका बाजार पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ सकता है।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इससे अनिश्चितता बढ़ सकती है, जिससे बाजार में अस्थिरता आ सकती है। वहीं, दूसरे का मानना है कि बाजार पहले से ही इस फैसले को लेकर सतर्क था और अब जल्द ही किसी बड़े उतार–चढ़ाव की संभावना कम है।
यह भी अहम है कि आने वाले चुनावों में राजनीतिक दलों को चंदा जुटाने के नए तरीके ढूंढने पड़ सकते हैं, जो बाजार पर अप्रत्यक्ष रूप से असर डाल सकता है। कुल मिलाकर, अभी यह कहना मुश्किल है कि शेयर बाजार पर इसका कैसा प्रभाव पड़ेगा।
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